भारत में क्रिकेट के खेल को पूरी तरह से अपने नियंत्रण में रखने वाली संस्था, भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) दुनिया की सबसे अमीर और ताक़तवर क्रिकेट बोर्ड है। BCCI के अपने कुछ नियम क़ानून होते है, उसी में एक उनकी पॉलिसी है कि, कोई भी भारतीय खिलाड़ी किसी भी विदेशी लीग्स में हिस्सा नहीं ले सकता है। इस बात की पुष्टि ख़ुद BCCI के उपाध्यक्ष राजीव शुक्लाने भी की है।
ऐसे में BCCI की यह पॉलिसी भारतीय खिलाडियों और भारत में क्रिकेट पर क्या असर छोड़ता है, आख़िर किस वजह से BCCI ने इतना सख्त नियम बनाया हुआ है, और क्या अब समय आ चूका है कि BCCI को अपने इस नियम में बदलाव करने की ज़रूरत है? आइये जानते है सभी पहलुओं को विस्तार से।
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क्यों BCCI भारतीय खिलाड़ियों को विदेशी लीग्स में हिस्सा नहीं लेने देता?
साल 2008 BCCI ने आईपीएल का आयोजन शुरु किया, जिसकी अपार सफ़लता के बाद दुनिया के बाकी के देशों ने भी अपने देश में टी20 लीग का आयोजन करना शुरु किया। जिसमे सबसे प्रमुख ऑस्ट्रेलिया की बीबीएल यानी बिग बैश लीग, इंग्लैंड की दी हंड्रेड और सीपीएल शामिल है।
लेकिन इन सभी विदेशी लीग्स में भारत के खिलाडियों को हिस्सा लेने की अनुमति BCCI ने नहीं दी। इसकी सबसे बड़ी वजह है आईपीएल, ऐसा करने से BCCI की सोने की चिड़िया आईपीएल पर नुकसान होने की संभावना है।
दरअसल भारतीय खिलाड़ी दुनिया में एक ब्रांड की तरह है, अगर BCCI भारतीय खिलाडियों को विदेशी लीग्स में खेलने की अनुमति दे देता है, तो इससे आईपीएल को टक्कर देने वाली लीग का जन्म होगा। जिससे BCCI की कमाई और जंगल में अकेला शेर बने रहने पर ख़तरा हो सकता है।
क्या BCCI को भारतीय खिलाड़ियों को विदेशी लीग्स में खेलने देना चाहिए?

अक्सर क्रिकेट के फैंस और लोगो में यह चर्चा का विषय बना रहता है कि, क्या BCCI को भारतीय खिलाड़ियों को विदेशी लीग्स में खेलने देना चाहिए या नहीं। इस बात पर कोई निष्कर्ष निकालने से पहले इसके फायदे और नुकसान को समझ लेते है।
क्या होगा नुकसान?
दरअसल अगर हम भारतीय क्रिकेट को बीते कुछ महीनो से देखे तो भारत के सीनियर खिलाड़ी जो एक ब्रांड बन चुके है जो BCCI के सेंट्रल कॉन्ट्रैक्ट में शामिल है। जैसे रोहित शर्मा, विराट कोहली, बुमराह, पांड्या। यह सब भारत के लिए ही सारे मैच और टूर्नामेंट खेलने में असमर्थ है। जिस वजह से अक्सर हर दूसरी सीरीज में देखा जाता है कि सीनियर खिलाडियों को आराम दिया गया है। उनके वर्क लोड मैनेजमेंट के लिए BCCI बैठक बुलाता है।
ऐसे में जब यह खिलाड़ी देश के लिए ही सारे मुकाबले नहीं खेल पा रहे तो विदशी लीग में खेलने के लिए यह समय कहाँ से निकालेंगे?
क्या होगा फायदा?
विदशी लीग में खेलने से भारतीय खिलाडियों को यह फायदा होगा कि, वो उस देश की पिच, माहौल, परिस्तिथि और उनके खिलाडियों के साथ समय बिता कर उनकी ताकत और कमज़ोरी का पता लगा सकते है।
उदाहरण के तौर पर भारतीय युवा बल्लेबाज़ श्रेयस अय्यर को लेते है, जो आईपीएल में केकेआर के लिए खेलते है। बीते साल उनके कोच थे ब्रैंडन मैक्कुलम जिन्हे श्रेयस की शार्ट बॉल की कमज़ोरी का पता चल गया। और मैक्कुलम जो अभी इंग्लैंड टेस्ट टीम के कोच है ने श्रेयस को बीते साल इंग्लैंड में शार्ट बॉल पर अपने गेंदबाज़ो से कह कर उन्हें आउट कराया था।
ऐसे ही अगर भारतीय खिलाड़ी भी विदेशी लीग में खेलेंगे तो उन्हें भी इन सभी बारीक़ चीज़ो का पता चलेगा जिससे भारतीय टीम सीरीज टूर्नामेंट और वर्ल्ड कप जीत सकती है।

क्या BCCI को अपने इस नियम में बदलाव करने की ज़रूरत है?
इन सभी चीज़ो को ध्यान में रखते हुए BCCI को चाहिए कि वो अपने इस नियम में बदलाव कर सकता है। जैसा कि हमने ऊपर समझा सेंट्रल कॉन्ट्रैक्ट वाले खिलाडियों के पास समय की पाबंदी है। तो ऐसे में BCCI को उन भारतीय खिलाडियों को विदेशी लीग में खेलने दे देना चाहिए जो BCCI के 20 -25 कोंट्रक्टेड खिलाड़ी नहीं है।
इसमें युवा खिलाड़ी जैसे मुकेश कुमार, जयंत यादव भी हो सकते है और सीनियर खिलाड़ी मुरली विजय, सुरेश रैना भी जिन्होंने हाल में ही भारतीय टीम और आईपीएल में चयन न होने की वजह से रिटायरमेंट लिया है।

क्या BCCI क्रिकेट के साथ कर रहा न्याय?
चूंकि हमे पता है कि भारत जैसे देश में क्रिकेट गली गली खेला जाता है और भारतीय टीम की स्क्वॉड और प्लेइंग-XI में जगह बना पाना कितना ज़्यादा मुश्किल होता जा रहा है। ऐसे में BCCI को अपने हित के साथ साथ उन खिलाडियों को भी आगे बढ़ने का मौका देना चाहिए।
जो किसी कारण की वजह से भारतीय टीम में अपनी जगह नहीं बना पाए, लेकिन मौका मिलने पर वह दिखा सकते है कि उनमे कितना प्रतिभा है। जिससे उन सभी खिलाडियों का भी जीवन व्यापन अच्छा हो सके। ऐसा करने से आख़िर अंत में किसी व्यक्ति विशेष या किसी संस्थान का नहीं बल्कि क्रिकेट के खेल के साथ ही न्याय होगी।